प्रशांत कटारे, भोपाल. मध्य प्रदेश में लोकसभा के चुनाव जारी हैं. यहां चुनाव के पहले चरण का मतदान हो चुका है. इस बीच प्रदेश की हाई प्रोफाइल सीट पर जातिगत समीकरण जाग गए हैं. बता दें, प्रदेश के भोपाल लोकसभा क्षेत्र में सांप्रदायिक आधार पर होने वाली वोटिंग का लाभ हमेशा बीजेपी को मिलता रहा है. बीजेपी के लिए यह सीट सबसे ज्यादा सुरक्षित सीट मानी जाती रही है. इसके बावजूद भोपाल लोकसभा में कांग्रेस-बीजेपी के उम्मीदवार जाति, समुदाय आधारित समीकरण फिट करने में जुट गए हैं. यहां बीजेपी ने आलोक शर्मा और कांग्रेस ने अरुण श्रीवास्तव को चुनावी मैदान में उतारा है.
जातिगत समीकरण साधने के लिए आलोक शर्मा ब्राह्मण-सिंधि सम्मेलनों में, तो अरुण श्रीवास्तव कायस्थों से जुड़े संगठनों के साथ बैठकें कर रहे हैं. सियासी दलों की इस पर अपनी-अपनी राय हैं. जबकि, राजनीतिक पंडित इसे बहुत प्रभावी नहीं मानते. कांग्रेस उम्मीदवार अरुण श्रीवास्तव के कायस्थों को लुभाने की कोशिशों के बीच कांग्रेस भी सोशल इंजीनियरिंग से इंकार नहीं करती. कांग्रेस के मीडिया सलाहकार केके मिश्रा का कहना है कि जिस दौर में यह देश चल रहा है उसमें सोशल इंजीनियरिंग सियासत में बहुत बड़ा फैक्टर है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता. फिर चाहे ही वह कोई भी राजनीतिक दल हो.
लोगों को जाति के आधार पर सम्मान मिलना चाहिए- कांग्रेस
मिश्रा ने कहा कि सौभाग्य से या दुर्भाग्य से किसी न किसी जाति का उम्मीदवार तो होगा ही. प्राथमिकता इस बात को दी जाती है कि अगर किसी जाती की आबादी किसी क्षेत्र में ज्यादा है, तो उसको उतना सम्मान दिया जाए. राहुल गांधी जो जाति जनगणना की बात कर रहे हैं उसका उद्देश्य भी यही है. जिस कौम की जहां जितनी हिस्सेदारी हो उसको उतना सम्मान मिले. भोपाल को भी इस परिप्रेक्ष्य में देखना होगा. लेकिन, जो लोग जाति के आधार पर उपेक्षित किए गए हैं उनको सम्मान मिलना चाहिए.
पीएम मोदी के मंत्र पर चल रही पार्टी- बीजेपी
बड़े वोट बैंक यानि ब्राम्हणों को लुभाने में लगे आलोक शर्मा से इतर, बीजेपी नेता दावा करते हैं कि, पीएम नरेंद्र मोदी ने एक ही मंत्र दिया है सबका साथ, सबका विश्वास, सबका विकास और सबका प्रयास. बीजेपी के प्रवक्ता सत्येंद्र जैन ने कहा कि हम इस मंत्र को लेकर आगे बढ़े हैं. पीएम मोदी ने चार जातियां तय की हैं, गरीब कल्याण, युवा कल्याण, किसान कल्याण, नारी शक्ति कल्याण. हमने इसी को मूल मंत्र मानकर घर दिए हैं, बिजली दी है, शौचालय दिए हैं. हमारे लिए मतदाता किसी भी पंथ का हो, वह भगवान है. भोपाल के नागरिकों को भी 5 साल के लिए राशन दे रहे हैं. भोपाल की माता बहनों को 1250 रुपए दे रहे हैं.
इसलिए भोपाल लोकसभा में कुछ बदलने वाला नहीं-गुप्ता
कांग्रेस-बीजेपी की सियासत को नजदीक से परखने वाले वरिष्ठ पत्रकार दिनेश गुप्ता कहते हैं कि कांग्रेस के मन में कोई भी इक्वेशन हो सकता है. लेकिन, भोपाल सीट की जो तासीर है वह कांग्रेस के खिलाफ है. दल के साथ जब धर्म, संप्रदाय की बात आती है तो मामला बीजेपी के पक्ष में आ जाता है. केवल यह कह देना कि एक जाति के वोटर इतने हैं, तो उसे जीत मिल जाएगी, ऐसा संभव नहीं होता. भोपाल बहुत बड़ी लोकसभा है. इसमें ग्रामीण इलाका भी है.
बीजेपी के लिए भोपाल सेफ सीट
गुप्ता ने कहा कि भोपाल में एक तासीर सेट हो चुकी है. अब जब तक भोपाल में कुछ बहुल उलट-पलट नहीं हो जाता, तब तक नतीजे नहीं बदलने वाले. यहां तब तक बहुत कुछ नहीं बदल सकता जब तक बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ बहुत नकारात्मक माहौल न बन जाए. बीजेपी के लिए भोपाल बहुत सेफ सीट है. उमा भारती यहां आकर सांसद बन गईं. कांग्रेस भोपाल में एक्सपेरिमेंट करती रही है. कांग्रेस अल्पसंख्यक का प्रयोग कर चुकी है. बड़े चेहरे यहां से लड़ चुके हैं. सुरेश पचौरी, दिग्विजय सिंह चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन यह सारे प्रयोग फेल हो गए. भोपाल लोकसभा में समुदायों से ज्यादा धार्मिक गोलबंदी के आधार पर वोटिंग होती रही है. यह वोटिंग बीजेपी के पक्ष में जाती रही है. फिर चाहे 2014 में आलोक संजर बनाम पीसी शर्मा का मुकाबला हो या फिर 2019 में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर बनाम दिग्विजय सिंह के बीच मुकाबला हो.
भोपाल लोकसभा सीट पर इतने हैं इस जाति के वोटर
भोपाल लोकसभा में आठ विधानसभा सीटें हैं. यहां लोकसभा में 24 लाख से ज्यादा वोटर हैं. यहां 5 लाख के करीब मुस्लिम वोटर हैं. 3.50 लाख से ज्यादा ब्राह्मण वोटर हैं. भोपाल में ढाई लाख से ज्यादा कायस्थ वोटर हैं. क्षत्रिय वोटर की संख्या करीब डेढ़ लाख है. ओबीसी, एससी-एसटी और सिंधी वोटर की संख्या 8 लाख से ज्यादा है. भोपाल में बैरसिया, भोपाल उत्तर, नरेला, भोपाल दक्षिण पश्चिम, भोपाल मध्य, गोविंदपुरा और हुजूर पर बीजेपी का कब्जा है. जबकि, भोपाल उत्तर और भोपाल मध्य पर कांग्रेस का कब्जा है.
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FIRST PUBLISHED : April 24, 2024, 08:36 IST
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