पेस्टीसाइड और रासायनिक खाद के बिना किसानों की किस्मत बदल रहा ताइवानी पपीता, देसी के मुकाबले दोगुनी पैदावार

पेस्टीसाइड और रासायनिक खाद के बिना किसानों की किस्मत बदल रहा ताइवानी पपीता, देसी के मुकाबले दोगुनी पैदावार

सिरोही: खेतों में उपयोग होने वाले खतरनाक पेस्टीसाइड व यूरिया हमारी सेहत के लिए भी खतरनाक होते हैं, लेकिन सिरोही जिले में माउंट आबू की तलहटी पर बिना किसी खतरनाक पेस्टिसाइड या खाद का उपयोग किए जैविक तरीके से ताइवान के पपीतों की खेती हो रही है. यहां लगने वाले पपीते भारतीय पपीतों की तुलना में आकार में ज्यादा बड़े होते हैं. एक पौधे पर भारतीय पपीते से काफी ज्यादा पपीते के फल लगते हैं. ऐसे में जिले समेत अन्य राज्यों से भी किसान यहां खेती के गुर सीखने आ रहे हैं.

ब्रह्माकुमारी संस्थान के तपोवन के बीके लल्लन भाई ने बताया कि वह 17 वर्ष से यहां खेती से सम्बंधित नवाचार के लिए कई कार्य कर रहे हैं. वर्तमान में यहां ताइवान के रेड लेडी पपीते की खेती होती है. कुल 90 बीघा में से करीब 4 एकड़ में ताइवानी पपीते के साथ ड्रेगन फ्रूट, स्वीट कॉर्न समेत अलग-अलग फसलों को लगाया गया है, ताकि भूमि का पूरा उपयोग हो सके. वह पिछले 15 वर्ष से रेड लेडी पपीता लगा रहे हैं.

एक पौधे पर 150-200 पपीते
रेड लेडी पपीते के एक पौधे पर 150-200 पपीते होते हैं. इसमें एक पपीते का वजन 2 से 2.5 किलोग्राम करीब होता है. देशी पपीते के पौधे पर आमतौर पर 30-40 किलो पपीते लगते हैं. पपीता नाम के अनुसार अंदर से बिल्कुल लाल निकलता है. खेत में ड्रिप पद्धति से खेती की जा रही है. जैविक खाद बनाने के लिए छाछ, दही, गाय का गोबर, गौमूत्र आदि का उपयोग किया जाता है. अन्य राज्यों से किसान भी इसका प्रशिक्षण लेने तपोवन आते रहते हैं.

फसलों को दी जाती है पॉजिटिव एनर्जी
जैविक खेती के साथ ही यहां फसलों को यौगिक खेती के तहत आध्यात्मिक रूप से पॉजिटिव एनर्जी भी दी जाती है. पूर्व में यह जमीन बंजर थी. दूर-दूर तक केवल बबूल ही थे, लेकिन संस्थान की ओर से कृषि क्षेत्र में नवाचार कर इस भूमि को जैविक व यौगिक खेती से उपजाऊ बनाया गया. जमीन के अंदर जो केंचुएं काफी नीचे चले गए थे, उन्हें ऊपर लाकर भूमि को खेती के योग्य बनाया गया.

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